"जब माँ-बाप को वृद्धाश्रम में छोड़ दिया जाए, जब प्रेम का अर्थ केवल लाभ से हो, जब रिश्ते खून से नहीं, स्वार्थ से बनें — तब समझो, कलियुग की पराकाष्ठा चल रही है।"
आज के दौर में हम रोज़ाना ऐसी ख़बरें पढ़ते-सुनते हैं जो हमें झकझोर देती हैं — पत्नी प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर रही है, सास अपने ही दामाद के साथ भाग रही है, भाई बहन के विरुद्ध कोर्ट में खड़ा है, और बेटे मां-बाप को बोझ समझ कर वृद्धाश्रम भेज रहे हैं। कहीं डॉक्टर इलाज के नाम पर लूट रहे हैं, तो कहीं शिक्षक शिष्य के साथ अमानवीय व्यवहार कर रहा है। यह सिर्फ घटनाएं नहीं हैं, यह संकेत हैं — उस समय के जो संकेत शास्त्रों ने पहले ही दे दिए थे।
कलियुग क्या है?
सनातन धर्म के अनुसार, समय चार युगों में विभाजित है: सत्य युग, त्रेता युग, द्वापर युग, और कलियुग। इन युगों में 'धर्म' क्रमशः घटता है। जहाँ सत्य युग में धर्म पूर्ण रूप से 100% होता है, वहीं कलियुग में केवल 25% धर्म शेष रहता है।
महाभारत के अनुशासन पर्व और श्रीमद्भागवत महापुराण में कलियुग के लक्षण स्पष्ट रूप से बताए गए हैं:
"कलौ दश्यन्ति वै श्राद्धं, धर्मं विहाय नृणां मनः।
स्त्रियो पुरुष रूपेण, तथा पुरुष स्त्रीरूपिणः।"
— (भागवत पुराण 12.2.3)
अर्थात्, कलियुग में लोग धर्म का दिखावा करेंगे, परंतु आचरण भ्रष्ट होगा। स्त्रियाँ पुरुषों जैसे व्यवहार करेंगी और पुरुष स्त्रियों जैसे, सामाजिक और नैतिक व्यवस्था उलट जाएगी।
क्या वर्तमान समय ‘घोर कलियुग’ है?
'कलियुग' के बाद का कोई युग नहीं है। यह अंतिम युग है जिसमें अंधकार, असत्य, स्वार्थ, और अधर्म अपने चरम पर पहुँचते हैं। परंतु शास्त्रों में जब 'घोर कलियुग' शब्द आता है, वह संकेत देता है उस अवस्था की ओर जहाँ धर्म की बची-खुची शेषता भी लुप्त हो जाती है।
वर्तमान घटनाएं उसी ‘घोर कलियुग’ की तरफ संकेत कर रही हैं:
1. रिश्तों में विश्वास का पतन
पति-पत्नी का पवित्र बंधन अब समझौता बन चुका है। प्रेमी के साथ मिलकर पति की हत्या कर देना या नौकरी के लालच में जीवनसाथी का खून कर देना क्या केवल अपराध है? नहीं, यह हमारी सामाजिक और मानसिक गिरावट की निशानी है।
2. पारिवारिक व्यवस्था का विघटन
आज बहू सास के खिलाफ, सास बहू के खिलाफ, बेटा पिता के खिलाफ खड़ा है। माँ-बाप को वृद्धाश्रम भेजना अब सामान्य बात हो चुकी है। संयुक्त परिवार बिखर चुके हैं।
मनुस्मृति कहती है:
"मातृदेवो भव, पितृदेवो भव" लेकिन अब माँ-बाप 'बोझ' माने जा रहे हैं।
3. झूठ और फरेब का बोलबाला
शास्त्रों के अनुसार, कलियुग में सत्य दुर्लभ हो जाएगा। आज हर क्षेत्र में झूठ — राजनीति, व्यापार, रिश्तों, शिक्षा — व्याप्त है।
"सत्यं ब्रूयात्, प्रियं ब्रूयात्",
परंतु अब लोग न सत्य बोलते हैं, न प्रिय।
4. आध्यात्मिक पतन
आज धर्म का रूप केवल दिखावे तक सीमित है। लोग मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे जाते हैं, परन्तु भीतर से खोखले हैं। धार्मिक ग्रंथों को ज्ञान के लिए नहीं, लाभ के लिए पढ़ा जा रहा है।
5. मूल्यहीनता और मानसिक खोखलापन
रिश्ते सिर्फ सुविधा और पैसे के इर्द-गिर्द घूमते हैं। भावनाएं, संवेदनाएं, त्याग — इनका अस्तित्व खत्म हो रहा है। एक बच्चा अब माँ-बाप के साथ नहीं रहना चाहता, बल्कि प्ले स्टेशन, इंस्टाग्राम और वर्चुअल दुनिया में जीना चाहता है।
मोबाइल और सोशल मीडिया: आधुनिक 'कलियुग' का प्रवेश द्वार?
आज समाज जिस नैतिक गिरावट से गुजर रहा है, उसमें तकनीक – विशेष रूप से मोबाइल और सोशल मीडिया – एक बड़ा कारक बन चुका है।
शुरुआत में यह माध्यम थे जानकारी पाने, संवाद करने और जुड़ने के। लेकिन अब यह हमारे रिश्तों को तोड़ने, विचारों को विकृत करने और तथाकथित 'डिजिटल जीवन' में कैद करने का सबसे बड़ा कारण बन गए हैं।
1. रिश्तों में दरार की जड़
जब माँ-बाप, पति-पत्नी या भाई-बहन एक ही छत के नीचे बैठकर भी एक-दूसरे से बात करने की जगह मोबाइल में खोए हों — तो क्या यह मानसिक दूरी नहीं? सोशल मीडिया पर "स्टोरी" अपडेट होती है, लेकिन घर में कोई "कहानी" नहीं बची।
2. संस्कारों का पतन
आज का युवा "रिल्स" और "वाइरल ट्रेंड्स" में संस्कार नहीं, सनसनी ढूंढ रहा है।
महापुरुषों और ग्रंथों से प्रेरणा लेने की बजाय अब इंस्टाग्राम इन्फ्लुएंसर और यूट्यूबर को "आइडल" माना जाता है।
"जहाँ सच्चे ज्ञान की जगह मज़ाक ने ले ली हो, वहाँ समाज आत्महत्या की ओर बढ़ रहा है।"
3. अपराध का डिजिटल रूप
फर्जी पहचान, साइबर ठगी, ऑनलाइन धोखा, अश्लीलता का प्रचार — यह सब उसी मोबाइल के ज़रिए हो रहा है, जो कभी संपर्क का साधन था। अब वह "संस्कार" नहीं, "संक्रमण" फैला रहा है।
4. अकेलापन और मानसिक बीमारियाँ
सोशल मीडिया ने हमें 'लोगों से जुड़ा' दिखाया है, लेकिन वास्तव में 'भीड़ में अकेला' बना दिया है। रिश्ते नकली हो गए हैं, लाइक्स और फॉलोअर्स ही सम्मान का मापदंड बन चुके हैं।
शास्त्रों की चेतावनी और हमारी जिम्मेदारी
श्रीमद्भागवत महापुराण (12.3.30) कहता है: "कलौ नष्ट-धर्माणां, दम्भ-भूतं सतां प्रिये"
शास्त्रों के अनुसार कलियुग में बचाव का उपाय
हालांकि कलियुग को टालना संभव नहीं, परंतु श्रीमद्भागवत महापुराण में इसका समाधान बताया गया है:
"कलौ तु नाममात्रेण पुंसां मोक्षणमृच्छति"
केवल भगवान का नाम-स्मरण ही इस युग में मोक्ष दिला सकता है। यही कलियुग की विशेषता भी है — जहाँ पाप करने की गति तेज है, वहीं भगवान का नाम लेने से तुरंत पुण्य भी प्राप्त होता है।
क्या करें इस अंधकार में?
वर्तमान समय निश्चित रूप से ‘घोर कलियुग’ के लक्षणों को प्रदर्शित कर रहा है। लेकिन इससे घबराने की आवश्यकता नहीं है। यह वह युग है जहाँ बुराई जितनी बढ़ती है, उतना ही थोड़ा सा अच्छाई का बीज भी विशाल वृक्ष बन सकता है। हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि कलियुग में भगवान श्रीकृष्ण स्वयं कहते हैं कि ‘मेरा नाम ही मेरा स्वरूप है’। अतः आध्यात्मिक जागरूकता, नैतिक शिक्षा, और मानवता की भावना से हम इस अंधकार में भी प्रकाश फैला सकते हैं। इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम तकनीक का उपयोग विवेक से करें, न कि अंधभक्ति से। मोबाइल को 'सेवा' का साधन बनाएं, 'संवेदना' का नहीं।
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